छ: अहम कलमे

Wednesday, April 7, 2010 10:34 PM Posted by rafiq khan

इन छ: कलमों को अच्छी तरह याद करें और समझें और सच्चे दिल से
इन पर ईमान रखें.ये कलमे ईमान का निचोड़ है.
१.पहला कलमा तय्यब
अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं.हज़रत मुहम्मद
(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)अल्लाह के रसूल हैं.
२.दूसरा कलमा शहादत
मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं और
मैं गवाही देता हूँ कि हज़रत मुहम्मद(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)
अल्लाह के रसूल है.
३.तीसरा कलमा तमजीद
अल्लाह हर ऐब(बुराई)से पाक है और सब तारीफें अल्लाह के लिए है और
अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं और अल्लाह सबसे बड़ा है
और ताकत व कुव्वत देने वाला सिर्फ खुदा ए बुजुर्ग व बरतर है.
४.चौथा कलमा तौहीद
अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं.वह अकेला है उसका कोई शरीक
नहीं.उसके लिए बादशाही है.उसी के लिए तारीफ़ है.वही जिंदगी देता है और वही
मौत देता है.और वह जिन्दा है कभी नहीं मरेगा.उसके कब्ज़े में हर किस्म की
भलाई है और वह हर चीज पर कुदरत रखता है.
५.पाँचवा कलमा अस्तग्फार
मैं अलाह से माफ़ी मांगता हूँ जो मेरा परवरदिगार है हर गुनाह से जो मैंने जानबूझ
कर किया या भूलकर छुप कर या जाहिर हो कर और मैं उसकी बारगाह में तौबा
करता हूँ उस गुनाह से जिसको मैं जानता हूँ और उस गुनाह को जिसको मैं नहीं
जानता.ऐ अल्लाह बेशक तू गैबों(छुपी हुई चीजों) को जानने वाला और ऐबों(बुराइयों)
को छुपाने वाला और गुनाहों को बख्शने वाला और गुनाह से बचने की ताक़त और
नेकी करने की कुव्वत नहीं मगर अल्लाह की मदद से जो बुलन्द अजमत वाला है.
६.छठा कलमा रद्दे कुफ्र
ऐ अल्लाह बेशक मैं तेरी पनाह चाहता हूँ इस बात से कि मैं जानबूझ कर तेरे साथ
किसी को शरीक ठहराऊं और मैं माफ़ी चाहता हूँ तुझ से उस चीज के बारे में जिसको
मैं नहीं जानता हूँ.तौबा की मैंने उससे और बेजार हुआ कुफ्र से शिर्क से और तमाम
गुनाहों से और इस्लाम लाया मैं और ईमान लाया और मैं कहता हूँ कि अल्लाह के
सिवा कोई इबादत के लायक नहीं.हज़रत मुहम्मद(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)
अल्लाह के रसूल है.









Comments (8)

munnaji7@gmail.com

अलहम्दो लिल्लाह।

अलहम्दो लिल्लाह

मै दावे से कहता हु दुनिआ का कोइ भि मुसलिम एक अल्लाह मे भरोसा नहि करता
अब कैसे ?
क्योंकि कलमा तय्यब और कलमा शहादत मै सल्ललाए वालेवसल्लम मुहम्मद मुस्तफा का नाम जुडा है
बिना मुहम्मद अल्लाह को पाना नामुमकिन है पाना तो दूर मुस्लिम भि नहि हो सकता और जन्नत तो दूर मक्का शरिफ नहि जा सकता ।
और केवल अल्लाह के हुक़्म से बात नहि बनेगि , जब तक रसुल के आदेश का पालन न किया जाये , ओर जब तक रसुल को भेजा हुआ न माना जाये खुदा का
अब भाइ खुदा का भेजा कौन नहि है , हर बन्दा खुदा का ही भेजा हुआ है
लेकिन नहि अल्लाह ताला की भेजि सारि मखलुकात सारे जहान मे आपको यानि रसुल को सबसे अफज़ल समझे , और जो लोग मोहम्मद को अफजल नहि समझते है वो कभि खुदा को नहि पा सकते , और उनसे प्यार भि करना होगाोन्कि अगर उनसे कोइ नफरत करे तो बात नहि बन पायेगि , अब वो नफरत करे क्यो ? नफरत का कोइ सवाल ही नहि है ,
और उनके हुक़्म को मान ना यानि हदीस को मान ना , यहा केवल अल्लाह के हुक़्म से बात नहि बनेगि जब तक रसुल का हुक़्म ना माना ,
अब यहा साफ पता चलता है की इस्लाम एक इस्वर वादि है या व्यक्ति पुजा का प्रचारक है ?

अलहम्दो लिल्लाह

👍 bahut badiya

भाई इसलिए तो बोलते हैं १ नाम खुदा का है दूसरा नाम रसुल्लाह

अधूरा झान हमेशा घातक होता है। इसलिए जब तक किसी के बारे में पूरा झान ना हो बोलना नहीं चाहिए। इसका जवाब चाहिए तो और पढ़ें। इंशा अल्लाह जवाब जल्द ही मिल जाएगा।

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