वो बातें जिनसे मुसलमान इस्लाम से निकल जाता है
Saturday, April 17, 2010
1:09 AM
Posted by
rafiq khan
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आज के इस दौर में जिहालत की वजह से मुसलमान मर्द और औरतें जो मुंह में
आया बोल दिया करते हैं और कुछ ऐसी बातें भी बोल दिया करते हैं जिनसे आदमी
इस्लाम से निकल जाता है मतलब काफिर हो जाता है और उसका निकाह भी टूट
जाता है और उसे कोई खबर भी नहीं होती.अच्छे पढ़े लिखे लोग भी इस तरह की बातें
अपनी जबान से निकाल दिया करते हैं.इसलिए हम कुछ ऐसी बातें बता रहे हैं जिनसे
हर मुसलमान को बचना चाहिए और अगर खुदा न ख्वास्ता ये कुफ्रिया बातें मुंह से
निकल गई हो तो फ़ौरन अल्लाह से तौबा करें और नए सिरे से कलमा पढ़ कर मुसलमान
बनें और दोबारा निकाह करें.
१.खुदा के लिए स्थान साबित करना.कुछ लोग ये कह दिया करते हैं कि ऊपर अल्लाह
निचे पंच या ऊपर अल्लाह नीचे तुम.ये कुफ्र है.
२.किसी ने किसी से कहा -गुनाह न करो वरना खुदा जहन्नम(नरक) में डाल देगा.उसने
कहा-में जहन्नम से नहीं डरता या ये कहा-मुझे खुदा के अज़ाब की कोई परवाह नहीं.
एक ने दुसरे से कहा-तू खुदा से नहीं डरता उसने गुस्से में ये कहा कि मैं खुदा से नहीं
डरता या ये कहा कि बताओ कहाँ है खुदा.ये सब कुफ्र की बातें है.
३.किसी अमीर आदमी को देख कर ये कहना कि आखिर ये अल्लाह का कैसा इन्साफ है
कि उसको अमीर बना दिया और मुझे गरीब बनाया.ये कुफ्र है.
४.औलाद वगैरह के मरने पर दुःख और गुस्से में ये कहना कि खुदा को मेरा ही बेटा मिला
था मारने को.दुनिया भर में मारने के लिए मेरे बेटे के सिवा खुदा को कोई दूसरा नहीं मिला.
खुदा को ऐसा ज़ुल्म नहीं करना चाहिए था.अल्लाह ने बहुत बुरा किया कि मेरे इकलोते बेटे
को मारकर मेरा घर बेचिराग कर दिया.ये सब बातें बोलने से आदमी काफिर हो जाता है.
५.खुदा के किसी काम को बुरा कहना या खुदा के कामों में बुराई निकालना या खुदा का
मजाक उडाना या खुदा की बेअदबी करना या खुदा की शान में कोई फूहड़ शब्द बोलना ये
सब कुफ्र है.
६.किसी पैगम्बर या फ़रिश्ते के बारे में गुस्ताखी करना या उनको बुरा भला कहना या उनका
मजाक उडाना या उन पर ताना मारना या उनके किसी काम को बेहयाई बताना या बेअदबी
के साथ उनका नाम लेना ये सब कुफ्र है.
७.जो व्यक्ति हुज़ूर मुहम्मद सल्ल: को आखरी नबी(अंतिम पैगम्बर) न माने या हुज़ूर की किसी
चीज या बात की तौहीन करे या बुराई करे या हुज़ूर की किसी सुन्नत को बुरा कहे जैसे दाढ़ी बढ़ाना,
मूंछे कम करना,पगड़ी बांधना,खाने के बाद उँगलियों को चाटना.या सुन्नत का मजाक उडाए.वो
काफिर है.
८. इस्लाम में शक करना और ये कहना कि मालुम नहीं मैं मुसलमान हूँ या काफिर या अपने
मुसलमान होने पर अफ़सोस करना मसलन ये कहना कि मैं मुसलमान हुआ ये अच्छा नहीं हुआ.
काश मैं ईसाई या यहूदी होता तो बहुत अच्छा होता. या किसी कुफ्र की बात को अच्छा समझना.
या किसी को कुफ्र की बात सिखाना या ये कहना कि मैं न हिन्दू हूँ न मुसलमान मैं तो इंसान हूँ.
या ये कहना कि न मेरा मस्जिद से कोई तालुक है ना ही मंदिर से दोनों ढोंग है.मैं किसी को नहीं
मानता.या ये कहना कि काबा(धार्मिक स्थल) तो मामूली पत्थरों का पुराना घर है.इसमें क्या धरा
है जो मैं इसकी ताजीम(सम्मान) करूँ.या ये कहना कि नमाज़ पढना बेकार लोगों का काम है हमें
नमाज़ पढने कि कहाँ फुर्सत है.या ये कहना कि रोज़ा वो रखे जिसको खाना न मिले या ये कहना
कि जब खुदा ने खाने को दिया है तो रोज़ा रख कर क्यों भूखे मरें.या अज़ान की आवाज़ सुन कर
ये कहना कि क्या शोर मचा रखा है.या ये कहना कि नमाज़ पढने का कोई फायदा नहीं.नमाज़
पढना या न पढना बराबर है.या ये कहना कि ज़कात(दान) खुदाई टेक्स है जो मुल्ला मौलवियों ने
मालदारों पर लगा रखा है.इस किस्म की सभी बकवास खुला हुआ कुफ्र है.इन सब बातों से आदमी
काफिर हो जाता है.
९.जो व्यक्ति ये कहे कि मैं शरियत को नहीं मानता या शरियत का कोई हुक्म या फतवा नही मानता
ये सब हवाई बातें है वो काफिर है.
१०.शराब पीते वक़्त,जिना(बलात्कार) करते वक़्त या जुआ खेलते वक़्त बिस्मिल्लाह पढना कुफ्र है.
११.किसी मुसलमान को काफिर और काफिर को मुसलमान कहना कुफ्र है.
१२.खुदा की हराम(निषेध) की हुई चीजो को हलाल(अनुमति) कहना और हलाल को हराम कहना या
खुदा की फ़र्ज़ की गई चीजों में से किसी का इनकार करना या इस्लाम की बुनियादी चीजों तौहीद,
रिसालत,क़यामत,फ़रिश्ते,जन्नत,जहन्नम व आसमानी किताबों में से किसी भी चीज का इनकार
करना कुफ्र है.
१३.कुरआन की किसी आयत का इनकार करना या कुरआन में बुराई निकालना या कुरान की बेअदबी
करना या ये कहना कि कुरआन अल्लाह का कलाम(संवाद) नहीं किसी इंसान का कलाम है या किसी
इंसान की लिखी हुई किताब है.ये सब कुफ्र है.
इन सब के अलावा भी बहुत सी कुफ्रिया बातें लोग बोल दिया करते है.तो मेरे मुसलमान भाई और बहनों
अपनी ज़बान को काबू में रखो और इस तरह की बातों को बोलने और सोचने से किसी भी हालत में बचो.